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आस लाया हुं

।।आस लाया हुं।।  शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2” बिना कुछ ललए सब कुछ, मैं लाया हुुं. माना की भक्त नहीं हु, मैं उतना काबिल “2” पर दिल मैं तेरा अक़्स लाया हुुं, शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2” बिना कुछ ललए सब कुछ, मैं लाया हुुं. ना कोई लोभ है ना है कोई इच्छा”2” फिर भी मनोकामना बहुत ख़ूब लाया हुुं. मैं तेरे चरणों में अपना शीश नवाता हुुं शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2” बिना कुछ लाएं सब कुछ, मैं लाया हुुं. सुना था मिलोगे ढ़ूुंढने पे कही भी कभी भी,”२” मैं अंतर्मन में शोध करके आया हुुं।। मैं तेरे चरणों मेंअपना शीश नवाता हुुं शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2” बिना कुछ लाए सब कुछ,  मै लाया हुुं.                          ~ Akhilesh Kumar Kanik

मैं लहराता उन साँसो से, जो सरहद पर भीड़ जाती है

मैं लहराता उन साँसो से  जो सरहद पर भीड़ जाती है मेरा अस्तित्व बचाने  खुद को जो क़ुर्बान कर जाती है  मेरे ख़ातिर ये अपनो को  घन घोर सी पीड़ा दे जाती है  मैं लहराता उन साँसो से  जो सरहद पर भीड़ जाती है एक नए भारत के लिए  अपनो से भी जुदा हुए वो  अपने घर को अनाथ करके  मेरा आँगन सज़ा गये वो   मैं लहराता उन साँसो से  जो सरहद पर भीड़ जाती है सौ सालो तक क़ैदी थी में  आज़ादी मुझको दिला गये वो  मेरा स्वाभिमान बचाने  खुद की जाने मिटा गये वो                           ~   By Sukanya Shidhaye

मेरे दादा की आजादी

  एक रोज बैठा आंगन में, पंछी उड़ता देख गगन में, दादा जी से में फरमाया, लाय दो इक पंछी पिंजड़ में। दो सयानी आंखों ने, मुझ पे कुछ ऐसे गौर किया, किसी बच्चे की गुड़िया को मैंने जैसे मार झपाटा चोर लिया। उलझन थी मन में की दादा, गुस्सा होंगे या नाराज़, महंगी होती होगी चिड़िया, या फिर है कुछ और ही राज़। दादा ने फिर चुप्पी तोडी, और मेरी ये आंखें खोली, बंधन के दुख को बतलाया, बड़े प्रेम से यूं समझाया। आजादी की खुशबू में, पंछी जो चहचहाता है, पिंजड़े के बंधन में आ के, कितना वो फड़फड़ाता है। आज़ादी पाने को जैसे, वो उन दिनों तरसते थे, आज़ादी की सांसे लेने, पल पल को तरसते थे। कितनी नदियां खून बहा के, कितने तन को धूल बना के, मिली थी उनको आजादी, मेरे दादा की आजादी। अपनों को मरते देखा, हर तरफ थी फैली बरबादी, इन सब को सहकर ही आई थी, मेरे दादा की आजादी। आज जो इस पंछी को मैंने, बांध के पिंजड़े में डाला, उसी वेदना को भोगेगा, वो नन्हा पंछी बेचारा। अ अनार, आ आम का पढ़ते, आ आजादी का भूल न जाना, आज़ादी पाने खातिर की, कुर्बानी को भूल न जाना। याद रहे वो अमर जवान, जो भू पर है कुर्बान हुए, उन माताओं को नमन, जिनक...

देश की आन, उनकी आन...

 देश की आन, उनकी आन...  देश की शान पे कुर्बान...  वादियो की बर्फीली थंड में तैनात रेगिस्तान की गरम रेत में तैनात  देश की सुरक्षा में अपनी जान गवाते है  देश से दुश्मनों का साया हटाते है..!  मौसम चाहे कैसा भी हो, अपने कर्तव्य से वो कहा पीछे हट जाते है,  जब हो बात हिंदुस्तान के शेरो की  तो भारत के मेजर सोमनाथ शर्मा और कैप्टन विक्रम बतरा जैसे नाम सामने आते हैं..!                       By Vedant Maholkar                             1st Year CS

World Cancer Day 2022 | Poem on cancer day

Quatrain on World Cancer Day World Cancer Day 2022  Poster is made by Yamini Dalal [ 4th sem , CM ] रोते चहरो पर हसीं लेकर आया हुं, मौत को हरा कर जिंदगी लेकर आया हुं,  टूटे अरमानों को फिर से सपनो का जहान दिखाना है, जरा देख में आज कैंसर से जीत फिर अपने घर आया हूं। Kapil Malviya  6th sem , ECE *  Join us for more update  Insta     Youtube   Facebook  

विद्रोह : जब देश को खतरा हो गद्दारों ... | Poem on Republic Day

जब देश को खतरा हो गद्दारों से तो गद्दारों को धरती से मिटाना जरूरी है जब गुमराह हो रहा हो युवा देश का तो उसे सही राह दिखाना जरूरी है जब हर ओर फैल गई हो निराशा देश में तो क्रांति का बिगुल बजाना जरूरी है जब नारी खुद को असहाय पाए तो उसे लक्ष्मीबाई बनाना जरूरी है जब नेताओं के हाथ में सुरक्षित न रहे देश तो फिर सुभाष का आना जरूरी है जब सीधे तरीकों से देश न बदले तब विद्रोह जरूरी है और जब देश के युवा भूल रहे हो आजादी की कीमते तो उनको ये गणतंत्र राज्य कैसे बना ये बताना जरूरी है इसलिए हम सबको गणतंत्र दिवस मनाना जरूरी है। ~ Aman Vishwakarma