एक रोज बैठा आंगन में, पंछी उड़ता देख गगन में,
दादा जी से में फरमाया, लाय दो इक पंछी पिंजड़ में।
दो सयानी आंखों ने, मुझ पे कुछ ऐसे गौर किया,
किसी बच्चे की गुड़िया को मैंने जैसे मार झपाटा चोर लिया।
उलझन थी मन में की दादा, गुस्सा होंगे या नाराज़,
महंगी होती होगी चिड़िया, या फिर है कुछ और ही राज़।
दादा ने फिर चुप्पी तोडी, और मेरी ये आंखें खोली,
बंधन के दुख को बतलाया, बड़े प्रेम से यूं समझाया।
आजादी की खुशबू में, पंछी जो चहचहाता है,
पिंजड़े के बंधन में आ के, कितना वो फड़फड़ाता है।
आज़ादी पाने को जैसे, वो उन दिनों तरसते थे,
आज़ादी की सांसे लेने, पल पल को तरसते थे।
कितनी नदियां खून बहा के, कितने तन को धूल बना के,
मिली थी उनको आजादी, मेरे दादा की आजादी।
अपनों को मरते देखा, हर तरफ थी फैली बरबादी,
इन सब को सहकर ही आई थी, मेरे दादा की आजादी।
आज जो इस पंछी को मैंने, बांध के पिंजड़े में डाला,
उसी वेदना को भोगेगा, वो नन्हा पंछी बेचारा।
अ अनार, आ आम का पढ़ते, आ आजादी का भूल न जाना,
आज़ादी पाने खातिर की, कुर्बानी को भूल न जाना।
याद रहे वो अमर जवान, जो भू पर है कुर्बान हुए,
उन माताओं को नमन, जिनके थे लाल शहीद हुए।
उन वीरांगनाओं को प्रणाम, जो रण में खेल गई निडर,
जय हो उस भारत मां की जिस पे तन मन सब न्योछावर।
~ By Harsh Patel
ECE 3rd sem
Great brother 🔥🔥
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