।।आस लाया हुं।।
शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2”
बिना कुछ ललए सब कुछ, मैं लाया हुुं.
माना की भक्त नहीं हु, मैं उतना काबिल “2”
पर दिल मैं तेरा अक़्स लाया हुुं,
शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2”
बिना कुछ ललए सब कुछ, मैं लाया हुुं.
ना कोई लोभ है ना है कोई इच्छा”2”
फिर भी मनोकामना बहुत ख़ूब लाया हुुं.
मैं तेरे चरणों में अपना शीश नवाता हुुं
शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2”
बिना कुछ लाएं सब कुछ, मैं लाया हुुं.
सुना था मिलोगे ढ़ूुंढने पे कही भी कभी भी,”२”
मैं अंतर्मन में शोध करके आया हुुं।।
मैं तेरे चरणों मेंअपना शीश नवाता हुुं
शरण में तेरी बहुत आस लाया हुुं ,”2”
बिना कुछ लाए सब कुछ, मै लाया हुुं.
~ Akhilesh Kumar Kanik
Comments
Post a Comment