" ज़िंदगी है "
ये जिन्दगी है बस एक उलझी पहेली सी ,
इसी पहेली की उलझने को ढूंढने में,
ना जाने कितने पलों को खुद को ,
सुलझाने में निरंतर लगाए जा रहे हैं हम,
आकर्षण से निर्माण तक ,
सपने से हकीकत तक ,
औरों से खुद तक ,
कल से आज तक ,
हमने पलटे हैं न जाने कितने पन्ने,
इस जिन्दगी के किताब के।
अब कुछ और अंधेरे देखने है मुसाफिर,
कुछ और कांटो से भरे रास्ते देखने है मुसाफिर,
बस कुछ और दूर बची है तेरी मंजिल,
अब बस थोड़ी डोर टू थाम जिंदगी की,
थोड़ी डोर तुझे खुद सिखाएगी,
अब बस रोशनी पास है, पक्के रास्ते पास है,
अब बस कुछ और अंधेरे देखने है मुसाफिर ।
किसी लहर सी मुसीबत से बहक जाऊ,
इतना कमजोर तो नहीं है ये जिन्दगी,
किसी पुराने किस्से को आज पर हावी होने दे,
इतना कच्ची भी तो नहीं है ये जिन्दगी ,
खुद को खुद की जीत याद दिलाते हुए,
खुद की जीत को खुद सच होते देखना है ।
बस यही उम्मीद जताई नहीं दूसरो को,
पर खुद को हर रोज़ तो बताई है ना ।
कि रुक गई अगर ये कोशिशें तो साथ क्या रहेगा,
कि थाम ली अगर ये सब संघर्ष की घड़ियां तो,
तो वक्त कैसे बताएगा अपनी पहचान क्या है,
कि बस एक कदम आगे है ये सब चाहते।
ये ज़िंदगी है बस एक उलझी पहेली सी ......
- शुभम मिश्रा
👌👌
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