"मंथरा" सिर्फ एक शब्द नहीं अपितु एक अध्याय है जो मनुष्य के चरितार्थ की अनचाही व्याख्या करता है। त्रेता मे घटित रामायण की मूल थी ' मंथरा ' , अगर मंथरा न होती तो शायद श्रीराम को कभी मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के नाम से नहीं जाना जाता । वो मंथरा ही थी जिसकी संगति के कारण केकैयी माता को कुमाता के रूप मे याद किया जाता है। मंथरा कोई नाम नहीं बल्कि एक चरित्र है जिसे कभी 'मंथरा' के नाम से जाना जाता है तो कभी 'शकुनी' के नाम से ।
त्रेता मे एक मंथरा थी , द्वापर मे एक शकुनी था परन्तु कलयुग मे अनेकों मंथराए व अनेकों शकुनी हमारे इर्द गिर्द रहते हैं । ऐसे ही कई शकुनी व मंथराओं से मैं अपनी चार वर्ष की इंजीनियरिंग के दौरान मिला । इन मंथराओं को पहचानना शुरुआती दिनों मे काफी मुश्किल होता है पर धीरे धीरे उनका चरित्र दिखाई देने लगता है । मंथराओं की सबसे बड़ी खूबी 'ढोंग' करना होती है। वे आपको अपने मायाजाल मे फंसा लेती हैं और धीरे धीरे आप दुनिया को उनके नजरिए से देखना शुरु कर देते है।
यह जरूरी नहीं कि मंथरा एक लड़की ही हो , यह लड़का भी हो सकता है और सच कहूं तो आजकल लड़कियों से बड़ी मंथरा तो लड़के ही हैं । आपको इन मंथराओं से संभलकर रहना होगा कि कहीं इनकी वजह से आपको वनवास न काटना पड़ जाए । आप कोई राम तो हैं नहीं कि वनवास मे अपनी लीलाएं दिखाएं , आप तो एक साधारण मनुष्य हैं जो वनवास के दौरान किसी भी जानवर का शिकार हो सकते हैं । मंथराओं से दूरी आपके उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी है क्योंकि मंथरा कभी नहीं चाहेगी कि आप सशक्त हो क्योंकि अगर आप सशक्त हो गए तो मंथरा का आपपर कोई नियंत्रण नही रहेगा ।
यह मंथरा के चरित्र का संक्षिप्त चरित्रवर्णन था और जैसा कि मैनेे शुरुआत मे कहा कि 'मंथरा' एक अध्याय है और अध्याय सिर्फ एक छोटे से लेख मे नहीं लिखा जा सकता ...
To be continued...
Mere aaspas 3 manthra hai
ReplyDeleteAchha jii.....
DeleteMere aaspas 1 manthra hai, jo yaha pe blogs likhto hai😋
ReplyDeleteManthra ek chalk dost bhi hota he kbhi kbhii
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